केंद्र सरकार को बड़ा झटका; सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड स्कीम पर फौरन रोक लगाई, CJI ने कहा- चंदे की जानकारी न देना असंवैधानिक
Supreme Court Judgement On Electoral Bond News Update
Supreme Court Electoral Bond: लोकसभा चुनाव से पहले सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को बहुत बड़ा झटका दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की गुमनाम चुनावी बॉन्ड स्कीम पर फौरन रोक लगा दी है। भारत के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने केंद्र सरकार की चुनावी बॉन्ड स्कीम की कानूनी वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सर्वसम्मत से यह फैसला सुनाया है। सीजेआई ने कहा कि, चुनावी बॉन्ड स्कीम अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत सूचना के अधिकार का उल्लंघन है और अंसवैधानिक है. इसलिए चुनावी बॉन्ड स्कीम तत्काल प्रभाव से रोकी जा रही है और रद्द की जा रही है। बता दें कि, 2017 में केंद्र सरकार ने चुनावी बॉन्ड स्कीम को फाइनेंस बिल के जरिए संसद में पेश किया था। संसद से पास होने के बाद 29 जनवरी 2018 को चुनावी बॉन्ड स्कीम का नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया। इसके जरिए राजनीतिक दलों को गुप्त और गुमनाम रूप से चुनावी चंदा मिल रहा था।
चुनावी चंदे की जानकारी जनता को होनी चाहिए
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि, किस राजनीतिक दल को कहां से कितना चुनावी चंदा मिल रहा है। इसकी जानकारी जनता को भी दी जानी चाहिए। क्योंकि वोट डालने वाली जनता को यह जानने पूरा हक है कि राजनीतिक दलों को किसने कितना चंदा दिया है। लेकिन गुमनाम चुनावी बॉन्ड स्कीम ऐसा होने नहीं देती है। सीजेआई ने कहा कि, अगर यह कहा जा रहा है कि चुनाव में काले धन पर अंकुश लगाने के लिए गुमनाम चुनावी बॉन्ड स्कीम लाई गई है तो क्या यह जायज है कि काले धन पर अंकुश लगाने के लिए सूचना के अधिकार का उल्लंघन किया जाये। यह उचित नहीं है। चुनावी बांड स्कीम काले धन पर अंकुश लगाने वाली एकमात्र योजना नहीं हो सकती है। बल्कि चुनावी बांड स्कीम के गुप्त होने पर भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल सकता है। इसलिए चुनावी चंदे के अन्य विकल्प भी हैं।
सीजेआई का कहना था कि सभी राजनीतिक योगदान सार्वजनिक नीति को बदलने के इरादे से नहीं किए जाते हैं। राजनीतिक दलों को वित्तीय योगदान दो पक्षों के लिए दिया जाता है या तो राजनीतिक दल को समर्थन देने के लिए, या योगदान बदले की भावना से। सीजेआई ने कहा कि चुनावी बांड के माध्यम से कंपनी-कॉर्पोरेट से मिल रहे असीमित योगदान के बारे में खुलासा किया जाना चाहिए क्योंकि कंपनियों द्वारा दान पूरी तरह से बदले के उद्देश्य से है और अपने स्वार्थ से हो सकता है। सीजेआई ने कहा कि, सूचना के अधिकार की व्यवस्था राजनीतिक योगदान पर भी लागू होती है. इसलिए राजनीतिक दलों की फंडिंग के बारे में जानकारी आवश्यक है। ऐसा नहीं होने पर चुनावी बांड योजना असंवैधानिक है और RTI का उल्लंघन कर रही है। यह स्कीम रद्द करनी होगी।
अब चुनावी बॉन्ड जारी न करे SBI- CJI
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने SBI बैंक को आदेश दिया है कि, वह अब आगे चुनावी बॉन्ड जारी न करे। जबकि 2019 से अब तक जितने चुनावी बॉन्ड जारी किए गए हैं और वे चुनावी बॉन्ड राजनीतिक दलों द्वारा भुनाए गए हैं, एसबीआई उन राजनीतिक दलों और चुनावी बॉन्ड व पैसों की पूरी जानकारी चुनाव आयोग को दे। वहीं चुनाव आयोग को 31 मार्च 2024 तक राजनीतिक दलों को मिले चुनावी बॉन्ड और आए हुए चंदे की जानकारी वेबसाइट पर सार्वजनिक रूप से प्रकाशित करनी होगी। सीजेआई ने कहा कि राजनीतिक दल भी ये बताएं कि चुनावी बांड से उन्हें कितना पैसा मिला।
2 नवंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था
बता दें कि, इस मामले में सुनवाई पिछले साल 31 अक्टूबर को शुरू हुई थी। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ समेत जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा के बेंच ने तीन दिन की सुनवाई के बाद 2 नवंबर, 2023 को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। संविधान पीठ ने 31 अक्टूबर से 2 नवंबर तक पक्ष और विपक्ष दोनों ही ओर से दी गई दलीलों को सुना था। दरअसल, इलेक्टोरल बॉन्ड यानि चुनावी चंदे पर कांग्रेस नेता जया ठाकुर, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) समेत चार लोगों ने याचिकाएं दाखिल की थीं। याचिकाकर्ताओं का कहना था चुनावी बॉन्ड के जरिए गुपचुप फंडिंग पारदर्शिता को प्रभावित करती है। यह सूचना के अधिकार का भी उल्लंघन करती है। उनका कहना था कि इसमें कंपनियों की तरफ से भी दान देने की अनुमति दी गई है और गुपचुप तरीके से यानि कि गुमनाम।
चुनावी बॉन्ड मिलता कैसे था?
चुनावी बॉन्ड इस्कीम दानदाताओं को भारतीय स्टेट बैंक (SBI) से बॉन्ड खरीदने के बाद गुमनाम रूप से किसी राजनीतिक दल को पैसे भेजने की अनुमति देती थी। कोई भी भारतीय नागरिक, कंपनी या संस्थान चुनावी बॉन्ड खरीद सकता था। इसके लिए स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) की तय ब्रांच से बॉन्ड खरीदा जाता था। चुनावी बांड 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, 1 लाख रुपये, 10 लाख, और 1 करोड़ रुपये के रूप में जारी किए जाते थे। किसी व्यक्ति या कंपनी की तरफ से खरीदे जाने वाले चुनावी बांड की संख्या पर कोई सीमा नहीं थी।
चुनावी बॉन्ड योजना क्यों लाई थी केंद्र सरकार?
केंद्र सरकार के मुताबिक, 'चुनावी बॉन्ड के जरिए ब्लैक मनी पर अंकुश लगेगा और चुनाव में चंदे के तौर पर दिए जाने वाली रकम का हिसाब-किताब रखा जा सकेगा। इससे चुनावी फंडिंग में सुधार होगा। केंद्र सरकार ने अपने जवाबी हलफनामे में कहा था कि चुनावी बांड योजना पारदर्शी है। बता दें कि जो भी रजिस्टर्ड पार्टी है उसे यह बॉन्ड मिलता था. लेकिन इसके लिए शर्त रखी गई थी कि जिस पार्टी को पिछले आम चुनाव में कम-से-कम एक फीसदी या उससे ज्यादा वोट मिले हों। ऐसी ही रजिस्टर्ड पार्टी इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए चंदा पाने का हकदार होगी।